क्या धन ही अब जीवन है?
क्या धन ही अब जीवन है?
अपनों
का क्या कोई मोल नहीं ?
माँ
के आँचल में जो छुपा प्यार,
संसार
में जिसका तोल नहीं |
धन
के लोभी गद्दारों को |
मरने
को जिसने छोड़ दिया,
पैसों
की खातिर प्यारों को|
हाथ
पकड़ चलना सीखा ,
सीखा
चलना दीवारों पे |
वो
पैसों की खातिर चढ़ बैठा,
अपनों
की बनी मीनारों पे |
उगता
सूरज बहती धारा का
क्या
अब भी कोई छोर नहीं
क्या
धन ही अब जीवन है?
अपनों
का क्या कोई मोल नहीं ?
राजेन्द्र सिंह शेखावत
प्रशिक्षित स्नातक शिक्षक (हिंदी)
के.वि.भा.नौसेना पोत,वालसुरा जामनगर
के.वि.भा.नौसेना पोत,वालसुरा जामनगर
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