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मंगलवार, 4 फ़रवरी 2020

क्या धन ही अब जीवन है?

क्या धन ही अब जीवन है?
 क्या धन ही अब जीवन है?
अपनों का क्या कोई मोल नहीं ?
माँ के आँचल में जो छुपा प्यार,
संसार में जिसका तोल नहीं |
लगते अपने बेगाने से ,
धन के लोभी गद्दारों को |
मरने को जिसने छोड़ दिया,
पैसों की खातिर प्यारों को|
हाथ पकड़ चलना सीखा ,
सीखा चलना दीवारों पे |
वो पैसों की खातिर चढ़ बैठा,
अपनों की बनी मीनारों पे |
उगता सूरज बहती धारा का
क्या अब भी कोई छोर नहीं
क्या धन ही अब जीवन है?
अपनों का क्या कोई मोल नहीं ?
                                             

 राजेन्द्र सिंह शेखावत
      प्रशिक्षित स्नातक शिक्षक (हिंदी)           
के.वि.भा.नौसेना पोत,वालसुरा जामनगर

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