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शुक्रवार, 14 जनवरी 2022

लखनवी अंदाज

 1. लेखक ने क्या सोचकर सेकंड क्लास का टिकट लिया ?

उत्तर:-  लेखक ने सेकंड क्लास का टिकट यह सोचकर लिया कि वह भीड़ से बचना चाहता था । उसकी इच्छा एकांत में रहकर सफर करने की थी , क्योंकि उसे अपनी नई कहानी के बारे में सोचना था । इसके साथ ही वह खिड़की से प्राकृतिक दृश्य भी देखना चाहता था । 

2. डिब्बा अनुमान के प्रतिकूल निर्जन क्यों नहीं था ? 

उत्तर:- जब लेखक रेलवे स्टेशन पहुँचा , तो उस समय गाड़ी छूट रही थी । लेखक ने सेकंड क्लास के एक डिब्बे को खाली समझा और दौड़कर उसमें चढ़ गया , क्योंकि सेकंड क्लास के डिब्बे में महँगे टिकट के कारण कम ही यात्री बैठते थे , किंतु वहाँ एक बर्थ पर लखनवी नवाबी अंदाज़ में एक सफ़ेदपोश सज्जन सुविधा से पालथी मारे बैठे हुए थे , इस कारण डिब्बा लेखक के अनुमान के प्रतिकूल निर्जन नहीं था।

 3. नवाब साहब द्वारा लेखक से बातचीत की उत्सुकता न दिखाने पर लेखक ने क्या किया ? 

उत्तर:- नवाब साहब द्वारा लेखक से बातचीत की उत्सुकता न दिखाने पर लेखक ने भी अपनी ओर से नवाब साहब से परिचय पाने का कोई उत्साह नहीं दिखाया और खाली बैठकर नवाब साहब की असुविधा और संकोच के कारण के विषय में कल्पना करने लगे । लेखक को भी अपना आत्मसम्मान बहुत प्यारा था । अतः अपने आत्मसम्मान को बचाए रखने के लिए उन्होंने भी उनसे कोई बात नहीं की । 

4. लेखक को नवाब साहब के किन हाव - भावों से महसूस हुआ कि वे उनसे बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं हैं ? 

उत्तर:- लेखक को नवाब साहब के निम्नलिखित हाव - भावों से महसूस हुआ कि वे उनसे बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं हैं । 

( 1 ) लेखक के उस डिब्बे में अचानक ही पहुँचने से नवाब साहब की आँखों में एकांत चिंतन में विघ्न का असंतोष दिखाई दिया । 

( i ) नवाब साहब ने लेखक की संगति के लिए भी उत्साह नहीं दिखाया , जिससे यह लग रहा था कि वे उससे बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं हैं । 

( ii ) नवाब साहब गाड़ी की खिड़की से बाहर देखते रहे ।

 5. नवाब साहब की असुविधा और संकोच के क्या कारण रहे होंगे ?

उत्तर:- नवाब साहब की असुविधा एवं संकोच के निम्नलिखित कारण ( 1 ) नवाब साहब के सामने तौलिए पर दो खीरे रखे हुए थे । हो सकता है लेखक के कारण वे खीरे जैसी अपदार्थ वस्तु का शौक करते देखे जाने से संकोच में हों ।( ii ) नवाब साहब ने किफायत ( मितव्ययिता ) के विचार से सेकंड क्लास का टिकट खरीद लिया हो और अब यह नहीं चाहते । कि शहर का कोई सफेदपोश उन्हें सेकंड क्लास के डिब्बे में सफ़र करता देखे । 

6. नवाब साहब द्वारा उन खीरों की फाँकों को करीने से तौलिए पर का कारण बताइए । 

उत्तर:- नवाब साहब ने चाकू से दोनों खीरों के सिरों को काटकर उनका ' कड़वापन दूर किया । इसके बाद उन्हें बहुत एहतियात ( सावधानी ) से छीलकर उनकी फाँकों को करीने से तौलिए पर सजाया , जिसका कारण यह था कि वह एक नवाब थे और उनका हर कार्य सलीके ( तरीके ) से होता था । वह किसी भी कार्य को जल्दबाज़ी या असुविधाजनक तरीके से करना चाहते थे । 

7. नवाब साहब ने खीरे में नमक आदि बुरक कर क्या किया ?

उत्तर:- नवाब साहब ने खीरे में जीरा मिला नमक आदि बुरक कर लेखक से खाने के लिए पूछा , किंतु उनके द्वारा विनम्रतापूर्वक मना कर देने पर नवाब साहब ने अपनी सतृष्ण आँखों से नमक - मिर्च के संयोग से चमकती खीरे की फाँकों की ओर देखा । खिड़की के बाहर देखकर उन्होंने एक लंबी साँस ली और खीरे की एक फाँक उठाकर होंठों तक ले गए और फिर फाँक को सूँघकर खिड़की से बाहर फेंक दिया । 

8. लेखक ने मुँह में पानी आने पर भी खीरा खाने से इनकार क्यों किया ? 

उत्तर:- लेखक को अचानक से नवाब साहब का बदला हुआ व्यवहार अच्छा नहीं लगा । उन्होंने डिब्बे में चढ़ते समय लेखक के प्रति अरुचि प्रदर्शित की थी । इसीलिए लेखक ने खीरा खाने से इनकार कर दिया । नवाब साहब ने एक बार फिर लेखक खीरा खाने के लिए कहा , परंतु लेखक ने अपने आत्मसम्मान को बचाए रखने की खातिर एक बार फिर मना कर दिया । 

9. नवाब साहब द्वारा खीरा खाने की तैयारी का एक चित्र प्रस्तुत गया है । इस पूरी प्रक्रिया को अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए । 

उत्तर:- सेकंड क्लास के एकांत डिब्बे में बैठे नवाब साहब ने अपने सामने बिछे हुए तौलिए पर दोनों खीरों को रखा । उसके बाद पानी से निकाला और दोनों खीरों के सिरों को काटकर उन्हें गोद लिया । उन्हें धोया । फिर उसे तौलिए से पोंछने के बाद अपनी जेब से चाकू तब नवाब साहब ने दोनों खीरों को बहुत सावधानी से छीला और उनकी फाँके काटकर उसे तौलिए पर सजा दिया । उसके बाद जीरा - मिला नमक और बारीक पिसी हुई लाल मिर्च की सुर्खी खीरों की उन फाँको पर बुरक दी । इसके बाद एक - एक करके उन फॉकों को उठाते गए और उन्हें सूँघकर खिड़की से बाहर फेंकते गए । यह सब करते समय उनके मुँह में खीरे के स्वाद की कल्पना से ही पानी आ रहा था ।

10. नवाब साहब ने खिड़की के बाहर देखकर दीर्घ निःश्वास क्यों लिया ? 

उत्तर नवाब साहब ने जब खीरों की फाँकें बनाकर उन पर जीरा मिला नमक और लाल मिर्च की सुर्खी बुरक दी , तो वह उसे खाने की कल्पना करके ही आनंदित हो उठे । इसके बाद उन्होंने उन फाँको को बड़ी हसरत से देखा और अपने डिब्बे की खिड़की के बाहर देखकर लंबी साँस ली , जिससे वह अपने अंदर की साँस को बाहर छोड़कर अपने आप को तरोताज़ा बना सकें । 

11. अचानक ही नवाब साहब ने खीरे की फाँकों को खिड़की से बाहर फेंकना क्यों शुरू कर दिया ? 

उत्तर:- जब नवाब साहब ने लेखक से खीरा खाने का आग्रह किया , तो लेखक ने खीरा खाने से यह कहकर इनकार कर दिया था कि इसे खाने से मेदा ( आमाशय ) कमज़ोर होता है । अब नवाब साहब ने भी लेखक की बात मानकर खीरे की जीरे - नमक और मिर्च बुरकी हुई . फाँकों को नाक के पास ले जाकर सूँघा और उसके स्वाद का काल्पनिक आनंद लिया और खाने के स्थान पर उन्हें अपने डिब्बे की खिड़की से बाहर फेंकना शुरू कर दिया । 

12. नवाब साहब ने गर्व से गुलाबी आँखों द्वारा लेखक की तरफ़ क्यों देखा ?

उत्तर:- नवाब साहब ने अपने झूठे अनुभव तथा नवाबी शान को व्यक्त करने के लिए गर्व से गुलाबी आँखों द्वारा लेखक की तरफ़ देखा । नवाब साहब अपनी बनावटी रईसी से लेखक को प्रभावित करना चाहते थे । उनके अंदर घमंड , कृत्रिमता एवं दिखावे की प्रवृत्ति थी , इसलिए उन्होंने अहंकारपूर्ण दृष्टि से लेखक की ओर देखा । 

13. " नवाब साहब खीरे खाने की तैयारी और इस्तेमाल से थककर लेट गए " - इस पंक्ति में निहित व्यंग्य स्पष्ट कीजिए ।

 उत्तर:- प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से लेखक ने नवाब साहब पर यह व्यंग्य किया है कि नवाब साहब ने पूरी तल्लीनता से खीरों को धोया , काटा , झाग निकाला , फाँक बनाकर जीरा मिला हुआ नमक और लाल मिर्च बुरकी , परंतु झूठी शान में आकर फाँकों को मात्र सूँघकर ही फेंक दिया और फिर पेट भर जाने का कृत्रिम अभिनय किया । इन सब वास्तविक शारीरिक श्रम एवं काल्पनिक स्वाद लेने के बाद नवाब साहब मानसिक रूप से संतुष्ट दिखाई देने की कोशिश करने लगे । 

14. जब नवाब साहब ने खीरा खाया ही नहीं , तो उनकी ओर से डकार की आवाज किस प्रकार सुनाई दी ? 

उत्तर:- नवाब साहब ने खीरे की फाँकों पर जीरा मिला नमक लगाया , उन पर मिर्च बुरक दी । इसके बाद उन्होंने सूँघ - सूँघकर उन फाँकों को एक - एक करके अपने डिब्बे की खिड़की से बाहर फेंक दिया , क्योंकि लेखक ने खीरे को स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बताया था । खीरे को न खाने पर भी केवल उसे सूँघ लेने से ही नवाब साहब को परम संतुष्टि हो गई । इसी कारण खीरा न खाने पर भी उनकी ओर से डकार की आवाज सुनाई दी ।

15. लेखक के ज्ञान - चक्षु किस प्रकार खुल गए ? 

उत्तर:- जब लेखक ने नवाब साहब को खीरे को सूधने मात्र से ही अपना पेट भर लेने और परम संतुष्टि पाने के बाद डकार लेते सुना उसके ज्ञान - चक्षु यह सोचकर खुल गए कि यह तो बड़े आश्चर्य की बात है कि किसी प्रिय खाद्य वस्तु को बिना खाए भी परम संतुष्टि पाई जा सकती है और डकार भी ली जा सकती है । यदि ऐसा है तो फिर पात्र , घटना आदि की अनुपस्थिति में कहानी भी लिखी जा सकती है ।

16. ' लखनवी अंदाज ' के पात्र नवाब साहब के व्यवहार पर अपने विचार लिखिए । 

उत्तर:- ' लखनवी अंदाज ' के पात्र नवाब साहब का व्यवहार पतनशील सामंती वर्ग और उनकी बनावटी जीवन - शैली पर व्यंग्य करता है । नवाब बनावटी जीवन शैली अपनाने में विश्वास करते हैं और इसी में अपना पूरा जीवन बिता देते हैं । उन्हें जीवन के यथार्थ और कड़वी सच्चाइयों से कोई मतलब नहीं होता । नवाब साहब वास्तविकता से बेखबर कृत्रिम जीवन जीने में विश्वास करते हैं तथा स्वयं को सामान्य जीवन से कोसों दूर रहते हुए विशिष्ट श्रेणी का सदस्य मानते हैं । 

17. " बिना विचार , घटना और पात्रों के भी क्या कहानी लिखी जा सकती । है ? " यशपाल के इस विचार से आप कहाँ तक सहमत हैं? 

उत्तर:- " बिना विचार , घटना और पात्रों के भी क्या कहानी लिखी जा सकती है ? " लेखक का यह कथन ' नई कहानी आंदोलन ' के कथाकारों पर किया गया व्यंग्य है । इस व्यंग्य के माध्यम से वह स्पष्ट करना चाहते हैं कि कोई भी कहानी विचार , घटना व पात्रों के अभाव में उसी प्रकार नहीं लिखी जा सकती , जिस प्रकार खाद्य सामग्री को खाए बिना उसका रसास्वादन नहीं किया जा सकता , केवल खाने का अभिनय किया जा सकता है । विचार कहानी लेखन के लिए लेखक को प्रेरित करते हैं , घटनाएँ कथावस्तु को आगे बढ़ाने का कार्य करती हैं । और पात्र कहानी में प्राणों का संचार करते हैं । यह कहानी के आवश्यक तत्त्व हैं , इनके बिना लिखी गई रचना को एक स्वतंत्र रचना कहा जा सकता है , लेकिन कहानी नहीं । अतः हम उनके विचार से सहमत हैं । 

18. ' लखनवी अंदाज ' रचना में नवाब साहब की सनक को आप कहाँ तक उचित ठहराएँगे? क्यों ?

उत्तर:-  ' लखनवी अंदाज ' रचना में नवाब साहब द्वारा खीरे की फाँकों पर जीरा मिला नमक और लाल मिर्च की सुर्खी बुरकने के बाद उन्हें सूँघना तथा खिड़की से बाहर फेंककर रसास्वादन का अनुभव करना उनकी सनक का द्योतक है । इस सनक को किसी भी प्रकार से उचित नहीं कहा जा सकता , क्योंकि यह नवाब साहब की बनावटी जीवन शैली को दर्शाता है । उन्हें जीवन के यथार्थ और कड़वी सच्चाइयों से कोई मतलब नहीं था । वे केवल कृत्रिम जीवन जीने में विश्वास रखते हैं । 

19. ' लखनवी अंदाज ' कहानी नवाब साहब के माध्यम से नवाबी परंपरा पर व्यंग्य है । स्पष्ट कीजिए । 

उत्तर:-  लेखक ने ' लखनवी अंदाज ' कहानी के माध्यम से समाज के पतनशील सामंती वर्ग ( नवाबी परंपरा ) और उनकी बनावटी जीवन - शैली पर व्यंग्य किया है । नवाब बनावटी जीवन - शैली अपनाने में यकीन करते हैं और इसी में अपना पूरा जीवन बिता देते हैं । उन्हें जीवन के यथार्थ और कड़वी सच्चाइयों से कोई मतलब नहीं होता । ऐसे व्यक्तियों को समाज में कहीं भी देखा जा सकता है ।


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